ज्ञान मालिका : देवता और राक्षस – जगद्गुरुशंकराचार्य श्रीश्री राघवेश्वरभारती महास्वामीजी

श्री संस्थान

 

देवलोक, भूलोक और पाताल लोक सभी भगवान की सृष्टि है । देवताओं मतलब रोशनी, राक्षसों मतलब अंधेरा । स्वर्गदूत स्वर्ग में रहते हैं और राक्षस पाताल में । राक्षसों को ये ठीक नहीं लगा । इसीलिए वे सभी ब्रह्म देव के पास पूछें कि-
“क्यों हमें पाताल में रहना है?”
ब्रह्म देव ने कहा-
“कल देवताओं को भी बुलाऊंगा, सभी को भोजन सिद्ध कर के उत्तर बताऊंगा |”

अगले दिन देवताओं और राक्षसों ने सभी एक साथ इकठ्ठा हुए ।
राक्षसों ने कहा कि उन्हें पहले खाना दिया जाएं । ब्रह्म देव ने कहा-
“ठीक है, लेकिन एक शर्त है; आप सभी आमने-सामने बैठ कर अपने हाथ सीधा रख के खाना है ।”

 

सभी राक्षसों ने शर्त मंज़ूर किया लेकिन हाथ सीधा रख के खाने में विफल हुएं । अब देवताओं के बारी । एक उपाय करके, अपने हाथ से सामने बैठे देवता को खाना खिलाया ‌। ऐसे करने से सभी देवताओं की भूख मिट गई और सभी संतोष हुएं ।

तब ब्रह्म देव ने रक्षसों से कहा-
“इसी कारण से तुम लोग ऐसे हो, और देवता ऐसे हैं ।”

 

दाता मतलब देवता, रक्ता मतलब राक्षस । कौन जो औरों को दान करते हैं वे देवता समान होते हैं ‌। कौन जो अपने स्वार्थ के लिए सब कुछ इस्तेमाल करते हैं वे राक्षस समान होते हैं । जितना हो सके उतना दान करने से हमें दैवी गुण संपन्न होता है ।

अनुवादक : प्रमोद मोहन हेगड़े

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Srimukha

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