ज्ञान मालिका : दूर का पर्वत – जगद्गुरुशंकराचार्य श्रीश्री राघवेश्वरभारती महास्वामीजी द्वारा दिये हुए प्रवचन मालिका

श्री संस्थान

एक छोटा सा पहाड़, उस पर एक छोटा सा घर, उस घर में छोटे छोटे दरवाज़े और खिड़कियां । वहां रहतीं थीं एक छोटी लड़की । वह हर दिन खिड़की से बाहर की प्रपंच को देखती थी । उसे सामने वाले पहाड़ पर भी एक छोटा सा घर नज़र आईं । वो घर सोने की तरह चमकता हुआ नजर आता है ‌। उस लड़की को वहां जाने का बहुत इच्छा होती है । उधर हीं रहने का मन करता है ।

 

कुछ साल बाद लड़की की पिता ने एक साइकिल लाकर दिया । वह लड़की हर दिन साइकिल चलाती थी ‌। एक दिन कुतूहल में सामने दिखी पहाड़ के ऊपर जो घर थी, उस घर के पास गईं, पास जाकर देखा तो थोड़ा सा भी अच्छा नहीं था । बहुत गंदा और रंग भी उतर गया था । कोई सोने की द्वार नहीं थी । दुःखी होकर वापस जाने को जब साइकिल के पास आई तो सामने की घर का दरवाजा सोने की तरह चमक रही थी । वो उस लड़की का घर था ।

 

जैसे कवि गोपालकृष्ण अडिग जी ने कहा है हम सभी जो है हमारे पास उसे छोड़ कर जो नहीं है उसके तलाश में चलते हैं ‌। पूरे देश का चक्कर लगाने के बाद हमें अपने घर ही सबसे अच्छा लगता है ‌।

अनुवादक : प्रमोद मोहन हेगड़े

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