एक छोटा सा पहाड़, उस पर एक छोटा सा घर, उस घर में छोटे छोटे दरवाज़े और खिड़कियां । वहां रहतीं थीं एक छोटी लड़की । वह हर दिन खिड़की से बाहर की प्रपंच को देखती थी । उसे सामने वाले पहाड़ पर भी एक छोटा सा घर नज़र आईं । वो घर सोने की तरह चमकता हुआ नजर आता है । उस लड़की को वहां जाने का बहुत इच्छा होती है । उधर हीं रहने का मन करता है ।
कुछ साल बाद लड़की की पिता ने एक साइकिल लाकर दिया । वह लड़की हर दिन साइकिल चलाती थी । एक दिन कुतूहल में सामने दिखी पहाड़ के ऊपर जो घर थी, उस घर के पास गईं, पास जाकर देखा तो थोड़ा सा भी अच्छा नहीं था । बहुत गंदा और रंग भी उतर गया था । कोई सोने की द्वार नहीं थी । दुःखी होकर वापस जाने को जब साइकिल के पास आई तो सामने की घर का दरवाजा सोने की तरह चमक रही थी । वो उस लड़की का घर था ।
जैसे कवि गोपालकृष्ण अडिग जी ने कहा है हम सभी जो है हमारे पास उसे छोड़ कर जो नहीं है उसके तलाश में चलते हैं । पूरे देश का चक्कर लगाने के बाद हमें अपने घर ही सबसे अच्छा लगता है ।
अनुवादक : प्रमोद मोहन हेगड़े