शिक्षण की सार्थकता उसके आचरण में है – श्रीमान प्रोमोद पन्डित ।
वेद और संस्कृत का महत्व केवल अध्ययन में नहीं है, बल्की उसके आचरण में है। दुनिया उसी को सम्मान देती है जो आचारवान है। इसलिए सभी छात्र जीवन में आचार और विचारों को पवित्र रखना चाहिए। इससे विद्वान और विद्यालय दोनों को श्रेय मिल जाता है। अपने पूर्वाचार्य द्वारा स्थापित यह विद्यालय हम सभी के आराध्य श्री संस्थान जी के कृपाशीर्वाद से हजारों छात्रों को आश्रय स्थल बने तथा देश के हर विद्यालय केलिए आदर्श बनें,” ऐसे वचन विद्याविभाग के सचिव श्रीमान प्रमोद पंडित जी ने कहा।
श्रीमठ के शाखाओं में से एक, श्री राघवेंद्र भारती सवेद संस्कृत महाविद्यालय में वाणीपूजा और वार्षिकोत्सव मनाते समय मुख्य अतिथि के रूप में उन्होंने यह बात कही ।
अभ्यागत के रूप में उपस्थित मुगवा ग्राम पंचायत के अध्यक्ष श्री. टी. एस हेगड़े कोंडकेरे जी ने बात करते हुए कहा कि, वेद-संस्कृत के उत्कर्ष केलिए और विद्यालय के विकास केलिए अपने वैयक्तिक स्तर पर पूर्ण सहायता और सहकार प्रदान देने का आश्वासन दिया।
कार्यक्रम के अध्यक्षपद को श्री वे. मू. सुब्रमण्य भट्टजी ने अलंकृत किया। प्राचार्य विद्वान गणेश भट्टजी ने कार्यक्रम का प्रस्ताव एवं मेहमानों का परिचय दिया।
पूर्व प्राचार्य विद्वान श्री वी. जी. हेगड़े गुड्गे, परिषद के सदस्य श्री सुब्राय हेगडे तडाणी मंच पर उपस्थित थे। उपाध्यक्ष विद्वान श्री शंकर भट्ट गाणगेरे जी ने धन्यवाद समर्पण किया। डॉ नागपति भट्ट जी ने कार्यक्रम का निरूपण किया।