ज्ञान मालिका : स्वर्ग~नरक – जगद्गुरुशंकराचार्य श्रीश्री राघवेश्वरभारती महास्वामीजी

श्री संस्थान

एक सैनिक एक गुरु से मिला और पूछा-
“स्वर्ग – नरक है क्या ? कैसे हैं वे?”
तब गुरु-
“तुम्हारा काम क्या है ?”
सैनिक ने कहा-
“मैं एक सैनिक हूं।”
तब गुरु ने कहा-
“तुम सैनिक की तरह नहीं दिखते हों एक भिक्षुक की तरह दिखते हों ।”

 

इसे सुनकर सैनिक को बहुत गुस्सा आता है, क्रोध से अपने तलवार से गुरु को संहार करने चला ।

 

गुरु हंसकर कहा-
“यहीं नरक है; तुम नरक की रास्ते पर चल रहे हो.”

 

सैनिक को तब अपने गलती का अहसास होता है ‘कितना बड़ा पाप करने चला था मैं।’
ऐसा सोच कर, अपने तलवार को छोड़ कर, गुरु के आगे हाथ जोड़ता है ।

 

हां ! स्वर्ग और नरक है । अगर हम दूसरों के से प्यार से, संतोष से बात करते, दूसरों को मदद करते उन्हें आनंद देना ही स्वर्ग है । दूसरों को तकलीफ़ देकर, दुःख देना ही नर्क है । हम अपने जीवन को स्वर्ग बनाने की कोशिश करेंगे ।

 

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