ज्ञान मालिका : स्वप्रयत्न और दैवी कृपा – जगद्गुरु शंकराचार्य श्री श्री राघवेश्वर भारती महास्वामीजी द्वारा दिये हुए प्रवचन मालिका

श्री संस्थान

अकबर और बीरबल एक बार जंगल में जा रहे थे। कितना भी दूर जाएं कोई नगर कोई भी घर नहीं मिला। उन्हें बहुत भूख और प्यास लगी थी। तब बीरबल ने एक पेड़ के नीचे बैठ कर “राम! राम!” ऐसे राम जप करने लगा। अकबर ने कहा “जप करने से हमें खाना नहीं मिलेगा”, और आगे चला।

 

कुछ दूर जाने के बाद एक नगर मिला। वहां एक घर में जाकर “कुछ खाने को दीजिए” ऐसे खाना मांगा। तब वह घरवालों ने राजा के आने से बहुत खुश होकर तरह तरह के खाना बनाकर अकबर के उपचार करते हैं। उसमें कुछ खाना अकबर ने बीरबल के लिए लेकर आता है।

 

बीरबल अब भी जप में ही था। उसे खाना देते हुए अकबर ने कहा “मेरे प्रयत्न से अच्छा सा खाना मिला है|”
बीरबल ने कहा “श्रीराम के कृपा से खुद चक्रवर्ती ने मेरे लिए मेरे पास आकर खाना दे रहे हैं|”

 

खुद के प्रयत्न और दैवी कृपा दोनों को एक समान महत्व है। जीवन में यशस्वी होने के लिए खुद के प्रयत्न भी होना है और भगवान के कृपा भी चाहिए।

 

अनुवादक : प्रमोद मोहन हेगड़े

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