अमृतधारा गोशाला में गोमाता की उपासना ~ गोपाष्टमी

उपासना गाय समाचार

पेर्ल: गोपाष्टमी के शुभ संदर्भ में, शुद्ध देसी गाय के गोबर से निर्मित गोवर्धनगिरी पर्वत में गुरुवार रात को सभी भक्त गणों ने गोपाष्टमी मनाई । इस संदर्भ में श्रीकृष्ण को दीपों की रोशनी में रंगपूजा समर्पित करके सभी भक्त धन्य हुए ।

 

श्रीसंस्थान के मार्गदर्शन में कासरगोडु और बजकूड्लु की अमृतधारा गोशाला के गोवर्धन-मंदिर में, ८ वें वर्ष के, पिछले एक सप्ताह से संचालित गोपाष्टमी कार्यक्रम गुरुवार दिनांक 15 नवम्बर को विविध कार्यक्रमों के साथ संपन्न हुआ। पूर्वाह्ण में गणपति हवन, कामधेनु हवन, गोवर्धन हवन, कंकुमार्चना, भजन और महापुजा आदि कार्यक्रम संपन्न हुए । अपराह्न में गोवर्धन पूजा, भजन रामायण, विष्णु सहस्रनाम परायाण तथा संध्या काल में गोपुजा, तुलासीपुजा, दीपोत्सव आदि कार्यक्रम आयोजित किये गये थे । महापूजा के समय, रंगपुजा और अष्टावधान सेवा समर्पित हुई ।

 

धर्म-कर्म विभाग के सह-सचिव वेदमुर्ति कुटीलु श्री केशवप्रसाद भट्ट जी ने पूजा में पार्थना के समय कहा कि “भगवान से प्राप्त वस्तुओं को भगवान को ही समर्पित करना चाहिए। भगवान से जो प्रसाद के रूप में मिले उसे ही हम उपयोग कर सकते हैं । यही शास्त्रीय वचन कहता है। सनातन संप्रदाय के अनुसार प्रातःकाल से रात सोने तक हमारे कर्तव्य को भगवान का कार्य समझकर अच्छी भावना से करना चाहिए। केवल भगवान की कृपा से ही अपने सभी कार्य सहज रूप से चलता रहेगा। प्रतिदिन हमें कुछ नित्यकर्म करना होता है। उसमें से गोपूजा विशेष है। संप्रदाय के अनुसार कोई भी कर्म या कार्य गोग्रास देने के बाद ही परिपूर्ण कहलाता है। प्रत्येक कार्य गाय से प्रारम्भ होकर उस से ही समाप्त होता है। भारतीय परंपरा में गाय के बिना मानव जीवन संभव ही नहीं है। भगवान श्रीकृष्ण ने पूरे विश्व को गोपालन के बारें सिखाया है। गोमाता को कैसे पालन करना चाहिए ! यह महा संदेश देने का दिन ही गोपाष्टमी है।

 

प्राचीन काल में सभी गोपालक इंद्र देव की पूजा करते थे। जब गोपालकों ने भगवान श्रीकृष्ण के आदेश के अनुसार गोवर्धन पर्वत की पूजा की, तब देवेंद्र ने कोप से मुसलाधारा बारिश बरस गयी थी । भयभीत सभी गोपालक भगवान कृष्ण के चरणों में शरणार्थी बनकर दुःख प्रकट किये । इस सन्दर्भ में भगवान श्रीकृष्ण गोवर्धन पर्वत को उठा कार गोपालक और गोमाता की रक्षा किये । जब 7 वें दिन भी बारिश बरसाकर जीत नहीं सका तब देवेंद्र भगवान श्रीकृष्ण के शरण में आगया था । इससे हमें अहंकार छोड़ने का संदेश मिलता है। इस कारण से गोपाष्टमी के दिन गोमय से गोवर्धन पर्वत का निर्माण करके श्रीकृष्ण की पूजा करने से भगवान संतृप्त हो जाता है तथा हमारी सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं।

 

बाद में पंडित जी ने सभी कार्यकर्ताओं को प्रसाद दिया। सब लोग प्रसाद भोजन स्वीकार किये ।

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Srimukha

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