बेंगलूरु : श्री संस्थान जी ने कहा कि पूर्व पीठाधिपति श्री श्री राघवेंद्र भारती महास्वामीजी विद्यानुरागी थे एवं वेद, वेदांगों में अत्यंत आसक्ति रखे थे । इसलिए हर साल उनकी आराधना के पुण्य दिवस पर उनकी स्मृति में राज्य के एक महान विद्वान को पांडित्य पुरस्कार से सम्मान करके उन का स्मरण करने का कार्य चलता रहा है ।
गिरिनगर के श्री रामाश्रम में आयोजित ब्रह्मैक्य जगद्गुरु शंकराचार्य श्री श्री राघवेंद्र भारती महास्वामीजी के आराधना महोत्सव में अपनी दिव्य उपस्थिति में ‘करेकै उमाकांत भट्ट’ जी को ‘पांडित्य पुरस्कार’ प्रदान करके श्री संसथान जी ने कहा कि ‘विद्वान उमाकांत भट्ट जी मैसूर के श्री रामभद्राचार्य जी से शिक्षा प्राप्त किए हैं तथा हम भी संन्यास ग्रहण के उपरांत शिक्षण अभ्यास किये हैं । कीर्ति शेष श्री रामभद्राचार्य जी से श्री उमाकांत भट्ट जी संपूर्ण रूप से विद्या प्राप्त किये हैं और आशा करते हैं कि उमाकांत भट्ट जी से समाज केलिए और भी अधिक सेवाएँ मिल सकें ।
हव्यक महामंडल से बनाए गए ‘शिष्य बंध’ तंत्रांश के बारे में उन्होंने कहा कि ” मोबाइल माया का दरवाज़ा है, आज मोबाइल द्वारा पश्चिमी संस्कृति हमें घेर रही है । लेकिन माया के जगह मठ प्रवेश करके लोगों को सच्चाई की ओर ले जाएँ ।
वर्तमान पीठाधिपति श्री संस्थान जी साक्षात आदि शंकर
‘श्री राघवेंद्र भारती पांडित्य पुरस्कार’ स्वीकार करके विद्वान उमाकांत भट्ट जी ने अपने भाषण में अभिप्राय रखा कि भारतीय संस्कृति में सुज्ञान का मार्ग दिखाये थे श्री शंकरचार्य जी तथा अविश्वसनीय दुनिया में विश्वास की दुनिया बनाने वाले थे श्री शंकराचार्य जी । संसार सागर में राम को खोजने केलिए पथ और द्वार दोनों गुरु ही है । इसे भारत में और कहीं भी ढूंढने की ज़रूरी नहीं है । जहाँ गुरु रहते हैं वह क्षेत्र ही हरिद्वार है, परम पूज्य श्री संसथान जी के यह गिरिनगर एक पुण्य क्षेत्र है ।
वैचारिक क्षेत्र में रहे आतंकवादी लोग सवाल उठाएंगे कि “सदियों के पहले के शंकर जी का नाम आज के लोगों को क्यों कहते हैं ? लेकिन उसे जवाब यहाँ है । विरासत में आए वर्तमान पीठाधिपति भी आदि शंकर जी ही हैं। पीठ में बैठे पीठाधिपति आधारपीठ जैसे हैं। पीठाधिपति नहीं हो तो वह पीठ नहीं है । पीठ में उपस्थित व्यक्ति केवल व्यक्ति नहीं है बल्कि परंपरा की शक्ति है । इस कारण से ही ‘अविच्छिन्न परंपरा प्राप्त, विख्यात व्याख्यान सिंहासनाधीश्वर’ आदि उपाधियाँ यहाँ की गुरु परंपरा पर है । परंपरा में कोई भी रहे वह शंकराचार्य ही है। पीठ के बारे में, पीठाधिपति के बारे में बुरा कहना ठीक नहीं है । वह हमारे संस्कार को दिखाता है इत्यादि अभिप्रायों को श्री उमाकांत भट्ट जी गुरु परंपरा के बारे में स्पष्ट रूप से प्रकटित किये ।
इससे पहले सुबह मठ की परंपरा के अनुसार तीर्थराज पूजा आदि धार्मिक विधान द्वारा पूर्वाचार्य जी की आराधना चली। इसके बाद की सभा में विद्वान डॉ. राघवेंद्र भट्ट क्यादगि ने पूर्वाचार्य जी के बारे में रचित विद्वत्तापूर्ण ‘प्रणति पंचक’ नामक स्त्रोत्रमालिका का वाचन करके श्री संसथान जी को समर्पित किया।
पूर्व पीठाधिपति जी के काल से कई सेवानिरत शिष्य एवं भक्त इस आराधना महोत्सव में विशेष रूप से समाधि मंदिर में सेवा करके श्री गुरु परंपरानुग्रह प्राप्त करते हैं ।हव्यक महामंडल से बनाये गए ‘शिष्य बंध’ तंत्रांश को मठ के सम्मुख सर्वाधिकारी श्री तिम्मप्पय्य मडियाल जी (निवृत्त आई. पी. एस.) ने लोकार्पित किया ।
मुख्य कार्य निर्वाह अधिकारी के. जी. भट्ट जी महामंडल की अध्यक्षा श्रीमती बेर्कडवु ईश्वरी भट्ट जी, श्री मधुसूदन अडिग जी, श्री मोहन भास्कर हेगडे जी, समिति के अध्यक्ष श्री रमेश हेगडे जी, प्रधान कार्यदर्शी श्री वादिराज सामग जी, श्री आर. एस. हेगडे हरगि जी आदि गण्य व्यक्ति और विभिन्न प्रदेशों से आए हुए शिष्य-भक्त उपस्थित थे।