ज्ञान मालिका : हम मूर्ती है; ऊपरवाला संगतराश है – जगद्गुरुशंकराचार्य श्रीश्री राघवेश्वरभारती महास्वामीजी

श्री संस्थान

 

एक मंदिर में दो व्यक्ति थे, एक पूजारी और एक नौकर । पूजारी का काम पूजा करना, और नौकर का काम है मंदिर का सफ़ाई करना । एक बार नौकर को लगा कि, ‘पूजारी भी मेरी तरह सामान्य व्यक्ति हैं लेकिन उसे भगवान को छूने की भाग्य है और मुझे मंदिर के सीडी साफ़ करने की काम क्यों?”

 

एक सीडी को भी वैसा ही लगा, और उसने भगवान से पूछा-
“मैं भी पत्थर की हूं और भगवान के मूर्ती भी पत्थर से बनी है, उसे पूजा करते हैं और मुझ पर पैर रखकर जातें हैं । ऐसा क्यों ?”

 

तब भगवान ने कहा-
” भगवान के मूर्ती बनने के लिए बहुत से चोट खाने पड़ते हैं । सिर्फ एक तरफ से पत्थर काटने से वह सीडी बनती है । दो तरफ़ से काटने से द्वार बनता है । तीन तरफ से काटने से फलक वेदी बनती है । चारों तरफ से मार खाने से वह पत्थर भगवान के मूर्ती बनता है । ऐसे होते समय हजारों चोट खाने पड़ते हैं, दर्द सहना पड़ता है । तुम उसे सह नहीं पाए इसीलिए तुम सीडी बनें । ”

 

जीवन में कुछ हासिल करने और साधना करने के लिए दर्द और कष्टों का अनुभव करना पड़ता है । जीवन में आनेवाले कष्टों को सकारात्मक दिशा में स्वीकार करने से, सुखमय जीवन होता है । हमारे प्रयत्न के हिसाब से ऊपरवाला हमें बनाता है ।

अनुवादक : प्रमोद मोहन हेगड़े

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