गिरिनगर :- समर्थ नेतृत्व की उपस्थिति में कोई भी समुदाय प्रगति कर सकता है। विधि के विधान के समक्ष कुछ भी नहीं चलता। किसी भी कार्य को योग्य रीति से निभाने के लिए विवेक की आवश्यकता होती है। श्रीरामचंद्रापुर मठ के जगद्गुरु शंकराचार्य श्री श्री राघवेश्वर भारती महास्वामीजी कह रहे थे कि त्याग के बिना नेता बनना संभव नहीं।
गिरिनगर के श्रीरामाश्रम में विष्णुगुप्त विश्वविद्यापीठ की स्थापना के निमित्त श्री स्वामीजी धारा रामायण प्रवचन श्रृंखला में, पन्द्रहवें दिन का आशीर्वचन अनुग्रहित किया।
देसी घी के प्रभाव को हम पुराणों में देख सकते हैं। मंत्रियों को सभी समाज के हित के बारे में सोचना चाहिए। भस्म और अंकुर के बीच गहरा संबंध होता है। बच्चों को शिक्षण के साथ संस्कार भी देना आवश्यक है। श्री स्वामीजी ने समझाया की नींव के बिना दीवार नहीं खड़ी हो सकती।
श्रीराम जी विश्वामित्र के आश्रम में शिक्षा ग्रहण कर रहे थे। वहीं पर श्रीरामजी अपने वंश – सूर्यवंश के बारे में समझने का प्रयास कर रहे थे। प्रवचन में उन्होंने समझाया कि भगीरथ के महान प्रयासों के परिणाम स्वरूप गंगा का पृथ्वी पर अवतरण हुआ।
धर्म-कर्म खंड के श्री संयोजक रामकृष्ण कूटेलु ने प्रास्ताविक भाषण किया। श्री विनायक एन भट्ट जी ने कार्यक्रम का निरूपण किया।