भारतीय संस्कृति और परंपरा की उन्नति के लिए प्रयास करें – राघवेश्वर श्री

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बेंगलुरु श्री शंकर पीठ के संकल्प और ध्येय के साथ प्रतिबद्ध होना ही वास्तविक सेवा है। श्रीरामचंद्रापुर मठ के जगद्गुरु शंकराचार्य श्री श्री राघवेश्वर भारती महास्वामीजी ने वर्धंति उत्सव के संदर्भ में कहा कि भारतीय परंपरा, संस्कृति, औऱ धर्म की उन्नति के लिए मिलकर प्रयास करेंगे। गिरिनगर के श्री रामाश्रम में शुक्रवार, जुलाई 19, को चले वर्धंति उत्सव समारोह में उन्होंने आशीर्वचन दिया।

 

श्री गुरु की, श्री पीठ की सेवा करने में यदि आप लोगों को खुशी प्राप्त होती हो, सार्थकता का अनुभव होता हो तो और अधिक सेवा करें। एक दिन मजा करके उसके पश्चात यदि ध्येय को भूल जाए तो उसमें कोई अर्थ नहीं है। श्री पीठ के संकल्प और ध्येय के साथ प्रतिबंध होना ही वास्तविक सेवा है। विश्व का एकमात्र गो स्वर्ग, १३०० वर्ष की शंकर परंपरा को गौरवान्वित करनेवाला विष्णुगुप्त विश्वविद्यापीठ; जैसे सार्थक कार्यों के साथ जुड़ने के माध्यम से समाज को नंदनवन में परिवर्तित करें, ऐसे उन्होंने सलाह दी।

 

हमारा यह श्रीपीठ समाज की भलाई के लिए एक बड़ा द्वार बने। श्री पीठ के द्वारा यदि अनेकों महत कार्य संभव हो तो वही उत्सव है। अपनी अपेक्षा के अनुसार हम सभी विष्णुगुप्त विश्वविद्यापीठ को लोकार्पित करने की कार्य में प्रतिबद्ध बने।

 

वर्धंति याने वृद्धि, विकास को सूचित करने वाला पद है। बीतनेवाले प्रत्येक वर्ष के साथ हममें वृद्धि होनी चाहिए, विकास होना चाहिए; नहीं तो वह व्यर्थ है। लेकिन हमारे लिए सभी दिनों जैसा आज भी एक दिन है। इस भूमि को जिस कारण से आए उसे याद करने का दिन है। उन्होंने कहा कि जिस कार्य को करने के बारे में हम सोच रहे हैं, उसके बारे में आत्मावलोकन करना ही वास्तविक वर्धंति उत्सव का आचरण करना है।

 

होरनाडु के श्री अन्नापूर्णेश्वरी देवस्थान के धर्मदर्शि श्री भीमेश्वर जोशी दंपतियों ने श्री गुरु भिक्षा सेवा एवं चावल से उनका तुलाभार सेवा किया। चावल, अन्नापूर्णेश्वरी के प्रसाद का संकेत है। उनका मानना है कि तुलाभार सेवा करना याने अन्नापूर्णेश्वरी का संतृप्त होकर श्री पीठ को उन्नतोन्नत स्थान में ले जाने का संकेत है।

 

धार्मिक कार्यक्रम: वर्धंति उत्सव के अंतर्गत प्रातः अरुण होम, 48 अरुण नमस्कार, माताओं द्वारा मंगल आरती एवं श्री राजराजेश्वरी देवी को मंगल वस्तुओं का समर्पण, 108 कुंभों से गंगाजल का अभिषेक, श्री राम जी को आष्टावधान सेवा का समर्पण जैसे अनेक धार्मिक कार्यों का आचरण किया गया। श्री संस्थान जी ने भक्तों द्वारा दी गई रजत पीठ का आरोहण भी इस सन्दर्भ में किया।

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