एक शहर में एक युवक को जूडो सीखने की इच्छा होती है । वह गुरु को ढूंढते चल पड़ा । जूडो सिखाने को एक गुरु उसे मिल गया ।
लेकिन उस युवक को एक हाथ नहीं होने की कारण गुरु ने उसे सिर्फ एक ही हाथ से खेलने का पाठ सिखाया और हर दिन अभ्यास करने की सूचना दी । पूरी श्रद्धा से उसने पाठ का अभ्यास किया ।
कुछ समय बाद एक प्रतियोगिता में भाग लेता हैं । एक, दो, तीन करके ऐसे ही बहुत से स्तरों को पार किया उस ने । आख़री स्तर में एक बलिष्ठ व्यक्ति से सामना हुआ, फिर भी बिना डरें बड़े धैर्य से लड़ता हैं । सामनेवाले की एक गलती की सही अवकाश का उपयोग करके उसे हरा दिया । गुरु के वो पाठ महत्त्वपूर्ण था ।
इसीलिए शिक्षा में एक एक विशय भी हमारे लाभदायक हो सकता है। सामर्थ्य, गुरु के निर्देशन और सतत प्रयत्न से कोई भी विजेता बन सकता है । यहीं इस कहानी का नीति है ।
अनुवादक : प्रमोद मोहन हेगड़े