वह एक भूगोल शास्त्र के कक्षा । एक दिन अध्यापक ने छात्रों से पूछा ” प्रपंच के सात अद्भुत की सूची बनाएं ” सभी छात्रों ने जल्दी ही पिरामिड, चिना के महा दीवार, ताज महल, और कुछ लिख कर अध्यापक को दिखाया ।
लेकिन एक छोटी बालिका सिर्फ खाली कागज़ दिया।
अध्यापक आश्चर्य से पुछा- “ऐसा क्यूं?”
उसने कहा-
“प्रपंच में बहुत से अद्भुतता है । मुझे पता नहीं चला कि किस्को लिखुं किस्को नहीं।”
अध्यापक ने जब पूछा कि क्या है वो सब बालिका ने कहा-
“मैं देख सकतीं हूं, मैं सुन सकतीं हूं, मैं विचार कर सकती हूं, मैं बोल सकती हूं , मैं चल सकतीं हूं, मैं अनुभव कर सकतीं हूं, सबसे ज्यादा मैं इस जग से प्रेम कर सकतीं हूं । इससे अद्भुत प्रपंच में और क्या है ! ”
इस कहानी के नीति ये है कि हमारे पास सब कुछ है लेकिन उसे पहचानने की ज्ञान हम में नहीं है । हम अपने आप में एक मेल है । यहीं प्रपंच के अद्भुत है ।
अनुवादक : प्रमोद मोहन हेगड़े