ज्ञान मालिका : मन की शांति – जगद्गुरु शंकराचार्य श्री श्री राघवेश्वर भारती महास्वामीजी द्वारा दिये हुए प्रवचन मालिका।

श्री संस्थान

एक बार एक किसान एक विशाल स्टोर-हाउस में अपनी घड़ी खो देता है। वह पूरे स्टोर-हाउस को अच्छी तरह से खोजता है परंतु उसे वह घड़ी नहीं मिलती।

 

स्टोर-हाउस के पास कुछ बच्चे खेल रहे थे। किसान ने उन्हें बुलाया और कहा, “बच्चों, मैंने इस स्टोर-हाउस में अपनी घड़ी खो दी है। अगर कोई इसे मेरे लिए ढूंढ कर लायेगा उसे मैं उपहार दूंगा। ”

 

बच्चे स्टोर-हाउस की ओर भागे और घड़ी की खोज शुरू कर दिया। थोड़ी देर बाद, वे सभी निराश हो कर लौट आये क्यों की उन्हें भी घड़ी नहीं मिली।

 

इस बीच, एक छोटा लड़का सब देख रहा था। उसने किसान से कहा कि वह घड़ी खोजने की कोशिश करेगा। लड़का स्टोर-हाउस के अंदर गया। कुछ ही मिनटों के बाद, वह अपने हाथ में घड़ी लेकर आया।

 

सभी बच्चे उस लड़के की काम से आश्चर्यचकित हुए कि कैसे वह घड़ी को ढूंढने में कामयाब रहा जबकि वे सभी विफल हो गए थे।

 

किसान ने उस लड़के से पूछा,
“तुम्हें यह घड़ी कैसे मिली? तुमने क्या किया?”वह लडके ने जवाब दिया,

 

“मैं स्टोर-हाउस के अंदर गया, कुछ समय के लिए चुपचाप बैठा और सावधानी से सुनने लगा। उस शांतता में मुझे घड़ी की टिक टिक सुनाई दे रही थी। मैं उस स्थान पर गया जहां से आवाज आ रही थी और घड़ी मिल गई।”

 

इसी तरह जीवन में, हम अक्सर खुशी और मन की शांति खो देते हैं और उन्हें दूर-दूर तक खोजते रहतें हैं। लेकिन खुशी और शांति हमारे भीतर ही है। जब हम शांत बैठते हैं और उन्हें खोजते हैं, तो वो हमारा बन जाते हैं।

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