ज्ञान मालिका : हमें कितना जरूरत है? – जगद्गुरुशंकराचार्य श्रीश्री राघवेश्वरभारती महास्वामीजी द्वारा दिये हुए प्रवचन मालिका

श्री संस्थान

एक जगह में एक कंजूस था। उसके पास बहुत पैसा और दौलत थी मगर और पैसे चाहता था।

 

एक दिन उस ने शहर के राजा से, “मुझे कुछ दौलत दीजिए” ऐसा बिनती की।
राजा ने एक बार उसकी अवलोकन किया और कहा, “कल, सूर्योदय के समय यहाँ आओ; यहाँ से कितने दूर हो सकें उतनी दूर चलों; सूर्यास्त से पहले तुम ने जहाँ से शुरू किया था वहीं आना है । तब जितनी दूरी तुम ने चला है उतनी जमीन तेरी हो जाएगी।”

 

वह‌ कंजूस टघर गया और अगले दिन सुबह जल्दी उठकर, बिना खाना खाए, राजा की कहि हुई जगह पर सूर्योदय से पहले पहुंचकर सूरज का आने की प्रतीक्षा कर रहा था । सूर्योदय होते ही ज्यादा जमीन पाने की लालच में भागना शुरू किया। मध्यान्ह तक उसने बहुत दूर तक चला था। अब उसे वापस जाना था, लेकिन वह भूख और प्यास से थक गया था। एक एक कदम रखना उसे कठिन होता था । तीव्र दर्द और थकान से दुर्बल हो गया था। फिर भी कैसे भी करके उसने सूर्यास्त से पहल शुरू की गई जगह पर आ पहुंचा लेकिन वहां आते ही वहीं ज़मीन पर गपड़ा । गिरते ही उसका मरण हो गया।

 

राजा ने अपने सेवकों से कहा, “इस व्यक्ति को वहीं दफनाना। उसे सिर्फ ३ और ६ फुट की जमीन की जरूरत है।”

 

उस व्यक्ति की तरह हम भी, बिना सोचे हमारे आवश्यकता से ज्यादा दौलत पाने की लालच में जीवन बिगड़ लेते हैं। इसीलिए हमें कुछ भी पाने से पहले ये जरूर विचार करना है की उनके जरुरत हमें है या नहीं। ऐसा करने से बहुत से समस्या दूर हो जाती है।

 

अनुवादक : प्रमोद मोहन हेगड़े

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Srimukha

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