एक राज्य में एक महान दैव भक्त राजा था । वह हर दिन दैवी कार्यों को बहुत निष्ठा से करता था । लेकिन पुजा करते समय उसे तीन प्रश्न मन में आते थे । वे :
१. क्या सच में भगवान हैं? अगर है तो कहां है ?
२. क्या मैं उन्हे देख सकता हूं ?
३. वह क्या करता है ?
उस राजा को इन तीन प्रश्नों का सही उत्तर किसी से नहीं मिला । तब उस राजा ने सारे राज्य में संदेश भेजा कि-
‘अगर कोई इन प्रश्नों का उत्तर देने में सफल हुए तो उन्हें बड़ा इनाम मिलेगा, और अगर विफल हुएं तो उनके सिर दंड देना होगा।’
बहुत से लोग कोशिश करके विफल हुएं और दंड भी देना पड़ा । तब राजा अपने अमात्य से कहा उत्तर पाने के लिए ।
अमात्य बहुत चिंतित हुआ । और जब वह घर आया तो बेटे ने पूछा कि क्या समस्या है ? जब उसने पूरा विचार बेटे को बताया तो बेटे ने कहा-
‘कल मुझे राजा के महल में ले चलो, मैं राजा को उत्तर दूंगा ।’
अमात्य ने वैसा ही किया । अमात्य के बेटे ने महल के द्वार पर एक बरतन में दूध का मथन करने लगा । राजा आकर पूछा-
‘ये तुम क्या कर रहे हो?’
अमात्य के बेटे ने कहा-
‘मैं इसमें मक्खन ढूंढ़ रहा हूं।’
राजा ने कहा-
‘मकक्खन तो, दूध दही बनने के बाद मथन करने से मिलता है, है ना?’
राजा के इस बात को अमात्य के बेटे ने कहा-
‘तुम्हारे पहले दो प्रश्ननों का उत्तर मिल गया; जैसे दूध में मक्खन है वैसे ही भगवान, दही बनाकर मथन करने से उसे देख सकते हैं।’
‘ अब तीसरे प्रश्न का उत्तर क्या है?’
जब राजा ने एसे पूछा तो उसने कहा-
‘मुझे अपने सिंहासन पर बिठायिए।’
जब राजा ने ऐसा किया तो उस लड़के ने कहा-
‘भगवान अच्छे लोगों को उन्नत स्थान पर और अंहकारीयों को पाताल में रखता है।’
लड़के कि उत्तर से राजा को समाधान हुआ । उस लड़के को पुरस्कार प्रदान किया और खुद अंहकार छोड़ कर सौजन्यता से राज्य चलाया ।
अनुवादक : प्रमोद मोहन हेगड़े