एक जगह के एक झील में दो मेंढक थें । एक मोटा था, दूसरा पतला था । वे मेंढक एक दिन कूदते हुए एक घर के रसोईघर में जाकर एक बड़ा सा दही के बर्तन में गिर गएं । बहुत कोशिश की लेकिन ऊपर नहीं आ पाएं ।
मोटा मेंढक ने पतले वाले से कहा-
“मैं थक गया हूं, तैरने को और नहीं होगा मुझसे, मैं मर जाऊंगा।”
तब पतला मेंढक ने कहा- “कोशिश मत छोड़ना, तैरते रहों कुछ रास्ता मिल सकता है|”
मोटा मेंढक ने पतले मेंढक की बात नहीं सुनी; तैरना बंद कर दिया और मर गया । लेकिन पतला मेंढक ने कोशिश नहीं छोड़ा, तैरता रहा। तैरते समय पैरों को चलाने की कारण दही में मक्खन बन जाता है। वह पतला मेंढक उस मक्खन के ऊपर चढ़कर बर्तन से बाहर कूद गया।
इस कहानी के नीति यहीं है की हमारे जीवन में भी तरह तरह के कष्ट सामने आ सकते है। लेकिन धैर्य से हमारे प्रयत्न करते रहने से हमारे सभी कष्ट दूर हो जाता है और जीवन सुखमय बन जाता है ।
अनुवादक : प्रमोद मोहन हेगड़े