ज्ञान मालिका : करके ही सीखना है – जगद्गुरुशंकराचार्य श्रीश्री राघवेश्वरभारती महास्वामीजी

श्री संस्थान

 

एक शहर में एक व्यक्ति था । चोरी करना ही उसका काम था ‌। उसका एक बेटा था । वह बड़ा होने के बाद सोचता हैं कि अब पिताजी बूढ़े हो रहें हैं, उनका काम अब मुझे करना पड़ेगा । एक दिन बेटे ने पिता से कहा कि चोरी करने के लिए उसे भी साथ ले चलें ताकि वह काम सीख सकें । उस रात पिता ने बेटे के साथ एक घर गया । घर के कमरे में जाते ही बेटे को अंदर बंद कर दिया और अपने घर लौट आया ।

बेटे को बहुत दुःख हुआ, गुस्सा आता है । अकेले बैठकर सोचता हैं ” अब यहां से कैसे निकलना हैं ” । एक उपाय किया और बिल्ली की आवाज़ निकाला । उसे सुनकर घर के नौकर जाग गया, उसे लगा कि कमरें में कोई बिल्ली फंसी हैं; इसीलिए उसने एक छोटा सा दीप जलाकर कमरे की दरवाज़ा खोला । दरवाज़ा खोलते ही चस चोर का बेटा भाग लिया । कुछ लोग उसका पीछा करते हैं, लेकिन वह उनसे भी बच के घर पहुंचा । पिता को कहानी सुनाने चला, तभी पिता ने कहा ” कुछ मत कहना; तुम बच के आए हो, काफी है; काम तूने सीख लिया ” ।

 

ये चोर की कहानी हो सकता है लेकिन इसके पाठ बड़ा ह ‌। तैरने के बारे में जितना भी पड़ो कुछ सीख नहीं सकते । पानी में उतश्रना पड़ता है ‌‌। जलेबी की स्वाद का वर्णन करने से उसका स्वाद पता नहीं चलेगा । खुद खाने के बाद उसका अनुभव होता है । कुछ भी हो अनुभव से ही पता चलेगा ।

अनुवादक : प्रमोद मोहन हेगड़े

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