पिता अपने २५ उम्र बेटे के साथ रेल में जा रहा था। सामने अभी अभी शादी हुई एक जोडी बैठि थी। रेल चल रही थी।
कुछ देर बाद युवक खिड़की से बाहर देखते पिता से कहा,
“पेड़ों को देखो, सभी दौड़ रहें हैं |”
कुछ दूर चलते ही युवक ने हर वस्तुओं को देखते वही कहने लगा। पिता भी उसके बातों को मानते रहे। सामने बैठे नई जोड़ी को आश्चर्य और अनुकंप दोनों होता है। ‘युवक की दिमागी संतुलन ठीक नहीं है’ ऐसा सोच कर उन्होंने पिता से कोई अच्छा सा वैद्य के पास लेजा ने को कहा ।
तब वह पिता ने कहा,
“अभी हम अस्पताल से आ रहे हैं। आज तक उसकी दृष्टि नहीं थी; आज वैद्य के शस्त्रचिकित्सा से उसके दृष्टि आईं हैं। वह अभी प्रपंच को देख रहा है इसीलिए सब कुछ नया दिख रहा हैं|”
ये सुनकर वह युव जोड़ी दिग्भ्रांत हुएं।
बहुत सी सन्दर्भ में हम विचार किए बिना ही बोल देते हैं। हर किसी की हाल चाल में कुछ पूर्व पीठिका होती है। हमें विचार करके निर्धार लेना चाहिए।
अनुवादक : प्रमोद मोहन हेगड़े