ज्ञान मालिका : प्रेम का महत्व – जगद्गुरु शंकराचार्य श्री श्री राघवेश्वर भारती महास्वामीजी द्वारा दिये हुए प्रवचन मालिका

श्री संस्थान

एक युवक एक युवती से बहुत प्यार करता था। उसकी पागलपन देखकर दोस्तों और रिश्तेदारों घबरा गए थे कि अगर उसका प्यार टुक्रा गया तो क्या होगा। लेकिन वह युवती से एक बार भी उसने अपने प्यार की बात कभी बताया नहीं था। फिर भी उसे मालूम थी उसके प्यार की विषय।

 

एक बार कैसे भी करके अपना बेहद प्यार के बारे में उससे कहा। तब वह बोलि- “मुझे तुम्हारे लिए उस तरह की कोई भावना नहीं हैं।”

 

उसके दोस्तों और रिश्तेदारों चिंतित होने लगे – “निराश होकर क्या करलेगा, गंदी आदतों में पड़ सकता है। खुदकुशी कर सकता है।”

 

लेकिन वह युवक जैसे की कुछ नहीं हुआ हो, हस्ता फिरता रहा। उसके आजू बाजू वाले आशचर्य होकर पूछें, “क्या तुम थोड़ा सा भी निराश नहीं हो?”
तब युवक कहा – ” यह सही है की मैंने प्यार की; पर उसकी अदृष्ट में नहीं है; तो मैं क्यूं निराश करू?”

 

हम अपने काम प्यार से करें, जीवन में खुशी पाएं।

 

अनुवादक : प्रमोद मोहन हेगड़े

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Srimukha

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